लेख

Artykuły

इस भाग में आप को भारतीय विद्या विषयक लेख मिलेंगे। हम अन्य लेखकों को भी आमन्त्रित कर रहे हैं, कि वे अपने लेख यहां भेज दें। इन्हें हम स्वीकार करके किसी एक भाग में प्रकाशित कर सकते हैं। जो भी लेख भेजने हैं, वे सब आज तक उपलब्ध ज्ञान को आगे बढ़ानेवाले होने चाहिये और प्रमाणित स्रोतों पर आधारित होने चाहिये । हम केवल सकारात्मक लेख स्वीकार करते हैं । 

 

 

यूरोपीयसाहित्ये पञ्चतन्त्रस्य प्रभावः

यूरोपीयसाहित्ये भारतीयसंस्कृतसाहित्यस्य प्रभावो विद्यते, परन्तु १९ शताब्देः पूर्वं मूलग्रन्थानामप्राप्तिकारणादनूदितग्रन्थमध्यमेन भारतीयरचनान्यागच्छन्ति स्म। अत्र विशेषतः अतिप्रसिद्धग्रन्थविषये पञ्चतन्त्रविषये लेखितुमिच्छामि। पञ्चतन्त्रविषये सर्वे भारतीयजना जानन्ति यत्तस्य स्वरूपं किं, तस्य शीक्षा का, कथारचनाशैली कीदृशी अतस्तद्विषये चर्चास्मिन्लेखे व्यर्था।

आचार्यवराहमिहिरस्य संक्षिप्तपरिचयः

यह लेख भारतीय ज्योतिर्विज्ञान अनुसंधान केंद्र, सहारनपुर में ४८ आचार्य वाराहमिहिर समारोह के शुभ अवसर पर भारतीय विद्वान् डा॰ के॰वी॰शर्मा के द्वारा पूर्व प्रस्तुत भाषण का संस्कृत रूपान्तर है, जो २७ नवम्बर, १९७९ ई॰ को रामतीर्थ सभाङ्गम् सहारनपुर में आयोजित सातवें वराहमिहिर समारोह में प्रस्तावित था। इसमें परिस्थिति और प्रसंग के अनुसार कुछ बातें दूसरे शब्दों में कही या कुछ जोड़ी गयी हैं। लेख का उद्देश्य है आचार्य वराहमिहिर का रूपरेखा परिचय और साथ ही साथ मौलिक महत्त्वपूर्ण बातों पर ध्यान आकर्षित करना।

फ़िलिप रुचिंस्की

सूर्य विज्ञान - श्रीसाम्ब प्रणीत साम्बपञ्चाशिका

“साम्बपञ्चाशिका त्रैपुर्य सिद्धान्त का अपूर्व ग्रन्थ है। इसमें बाह्य गगन स्थित सूर्य एवं भीतर चिद्गगन में आलोकित प्रकाशात्म सूर्य का ऐक्य मुख्य प्रतिपाद्य है। यह वासुदेव भगवान् श्रीकृष्ण के पुत्र जाम्बावती से उत्पन्न श्रीसाम्ब द्वारा विरचित है । इस में ५३ पद्य हैं। स्वात्मविवस्वत् चिदर्क की पचास पद्यों में स्तुति एवं तीन पद्यों में पुष्पिका है। यह परम रहस्यमय आध्यात्मिक गहन ग्रन्थ है। महामाहेश्वर राजानक क्षेमराज ने इस पर संस्कृत भाषा में टीका लिखकर इसके रहस्य को प्रकट करने का प्रयत्न किया है।” - इस तरह वाराणसी के प्रकांड विद्वान् महामहोपाध्याय पं.